मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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Wednesday 10 October 2012

मेरा अनुभव -उमा जैन


देवाधिदेव कल्पद्रुम श्री शांतिनाथ जिनेन्द्राय नम:
मनमोहक छवि ,मीठी वाणी ,तुम हो वात्सल्य रत्नाकर
अनुपम सुख मिलता है गुरुदेव , चरणों की पावन रज पाकर
पाकर आशीष ,चरण रज मस्तक पर लगाकर ,होती चन्दन
कर जोड़ मस्तक झुका ,तव चरण कमल में है वंदन
जीवन के हर क्षण हर श्वास में स्मरणीय ज्ञान सिंधु ,जन जन के ह्रदय कमल में विराजित ,प्राणी मात्र के रक्षक ,सहज साधना में तन्मय ,धर्म तीर्थ की शान ,प्रग्यायोगी दिगम्बर जैनाचार्य श्री गुप्तिनंदी जी गुरुदेव के पावन चरण कमलों में मेरा कोटि कोटि नमोस्तु एवं आचार्य संघ के पूनीत चरणों में मेरा कोटि कोटि नमोस्तु ,वन्दामी ,इच्छामि !
गुरुवर मेरे पूर्व  जन्म के कर्मों का फल कहूँ य मेरे पुण्य का उदय हुआ जो आप जैसे महान ,लोक कल्याणकारी भावना से परिपूर्ण विनम्र ,निश्छल ,सरल स्वभावी ,ज्ञान सिंधु की अविरल धारा का रसपान करने को मिला ! गुरुदेव ! आपका आचार ,व्यवहार ,चरित्र इतना उज्जवल व महान है जिसका दर्शन करने मात्र से अपूर्व शान्ति प्राप्त होती है !आपमें वास्तविक सन्त तत्व के गुण विद्यमान हैं !आप जैसा आध्यात्मिक ,दार्शनिक ,निर्भीक सात्विक शांत ,सहज साधक ढूँढना बहुत कठिन है ! आपका जीवन एक खुली किताब है ,प्रत्येक पृष्ट कोई भी पढ़ सकता है ! बाहर भीतर की चर्या में कोई अन्तर नहीं है ! आपकी मुस्कुराहट में हँसो और हँसाओ की सद्भावना है ! आपके प्रत्येक आशीष में “संभलो और संभालो” का दिव्य उद्घोष है ! मन में मानव उत्थान की एक यथार्थ कल्पना है ! जिसको साकार करने में आप सतत प्रयतनशील हैं !
आपकी अपनी पावन दीक्षा भूमि रोहतक नगर में 23 मई 2012 को हुए मंगल आगमन का चित्रण मेरे मानस पटल पर उभर कर आता है ! आपका चार महीने का प्रवास चार दिन हुए ऐसा लगता है ! रोहतक के 2012 के पावन वर्षायोग में अनूठे कार्यक्रम को जीवन पर्यंत नहीं भूल पाउंगी ! वर्षायोग तो कई मिले परन्तु आपका वर्षायोग तो सर्वाधिक विशेष व ऐतिहासिक रहेगा ! आपके वर्षायोग में अनेक ऐतिहासिक कार्यक्रम देखने समझने व करने को मिले ! जैसे भाग्योदय संस्कार शिविर ,96 क्षेत्रपाल  विधान ,चन्दन षष्टी विधान ,अक्ष्मी प्राप्ति विधान ,दसलक्षण महाविधान व रत्नत्रय श्रावक संस्कार शिविर आदि ! दस दिन का संस्कार शिविर का अद्भुत दृश्य तो जीवन में स्मरणीय ही नहीं नेत्रों में भी चित्रित रहेगा ! संध्या में हुए धयान शिविर में श्वेत वस्त्रों को धारण कर ऐसा प्रतीत होता था आप जैसे वात्सल्य धनी गुरु ही शिष्य के अंदर की विकृतियों को निकालकर ,श्रावक में भक्तिभाव जागृत कर भक्त बनने की ,फिर भक्त से भगवान बनने की ताकत पैदा करते हैं ! धयान शिविर के अनुभव से मुख से यही निकलता है
इस बेरंग दुनिया में पहनकर सभी रंग,
कुछ पाया नहीं कुछ खोया है ! 
किन्तु आपकी प्रेरणा से पहने इस उज्जवल धवल लिबास ने ,
अंतस की विकृतियों की कालिमा को धोया है !
सांयकालीन गुरु भक्ति में किये जाने वाले पंच परमेष्ठी कीर्तन व चालीसा पाठ हमारे जीवन की खुराक बन गयी है !जसिके बिना रहना अब असंभव सा प्रतीत होता है ! तत्पश्चात की जाने वाली आरती व भक्ति तो बाल व युवाओं में ही नहीं वृद्धों में भी जोश भर देती है ! उन मांगलिक वेला में मंच पर विराजित उछ आसन पर आसीन आपके दर्शन व दिव्य वाणी तो ऐसी प्रतीत होती है जैसे साक्षात महावीर प्रभु का अवलोकन व उदबोधन  हो !
आपके समक्ष विराजित आपके संघ के बाल ब्रह्मचारी छोटी वय में दीक्षा को धारण करने वाले मिन्यों व माताजी को देखकर सँसार की नश्वरता व क्षण भंगुरता का आभास होता है ! हे गुरुदेव ! आपके संघ के सभी मुनि व माताजी अपने त्याग व संयम , तप की राह पर चलते हुए प्रतिभाओं के धनी  हैं!
मुनिश्री महिमासागर जी जो अपने ज्ञान और तपस्या के माध्यम से अपनी साधना में निरंतर संलग्न हैं ! एकांतर उपवास तो कभी ”बेले” आदि के उपवास से आपकी कृष्  काय की ओर ध्यान न देते हुए भी तपस्या के द्वारा अपने मोक्ष मार्ग पर अग्रसर हैं !
हे कृपावन्त हे महातपस्वी ,मुनि महिमा सागर तुम्हे प्रणाम
ज्ञान ध्यान तप लीन रहे और भक्ति करते, निज- पर का कल्याण !
मुनिश्री सुयश्गुप्त जी को देखकर कल्पना करना ही मुश्किल है कि इस पंचम काल में गुरुदेव जहाँ आजकल के बच्चों के रहने सहने –पहनने ओढने का ठिकाना नहीं वहाँ यह सन्त इतना पढ़ा लिखा C.A किये हुए धन वैभव लौकिक  प्रतिभा को ठुकरा कर आत्म चिंतन में इतना चिन्तित हो गया जिसने जग वैभव को छोड़कर मोक्ष मार्ग पर सतत कदम बढ़ाये हैं !
तूफ़ान लेके आये ऐसा जिन्दगी के साथ,
गुरु के संयोग से छूट गयी है जग बात!
जिन्दगी ऐसी गुजारी है धर्म के साथ ,
आचरण से मित गयी है अँधेरी रात !
मुनिश्री चंद्रगुप्त जी कंठ में मानो सरस्वती ही विराजमान है ,इतनी सुरीली आवाज ,इतनी लय और तन्मयता मुनिश्री की वाणी और चेहरे की मुस्कराहट तो प्राणी मात्र को लुभाने वाली है ! मुनिश्री के मुख से निसृत वाणी ,मन से खुश रहना ,गाना – गुनगुनाना ,मुस्कुराते रहना तो सोने पर सुहागे का काम करती हैं ! इतनी कम आयु में मधुर वाणी से ही आप इतनी ऊँचाइयों को छू सके हैं !
मुनिश्री चंद्रगुप्त जी तो साधना एवं आध्यात्म के गगन में चमकने वाले वह चन्द्र है ,जो बिना साज व बिना वीणा के केवल अपनी वाणी रुपी वीणा के द्वारा भजन व गीतों को न केवल रचकर वरन स्वयं ही गाकर वीतराग के चिन्मयी माहौल में प्रशस्त राग का अनुगुंजन करते हैं !
आप वह साधक हैं जो पाप को पुण्य में बदल देते हैं !
काँटे के उपहार को फुल में बदल देते हैं !
टूटी हुई वीणा के सब तार मिला देते हैं !
अपनी मधुर वाणी से मधुर संगीत के साज सजा देते हैं !
आर्यिका माता आस्था श्री जी तो हम सब के लिए प्रेरणा हैं ! देवकन्या का स्वरुप ,मधुर भाषी ,कोकिल कंठ ,कोमल देह में कठोर साधना ,जिनशासन में आत्मानुशासन के चरित्र अनुशीलन करती हुई अपनी आत्मा साधना में निरंतर संलग्न हैं ! माताजी का स्मित ,मुखमंडल दर्शनार्थियों को सहज ही न जाने किस वशीकरण मन्त्र से अभिभूत कर लेता है ! जैसा मैंने अनुभव किया है ,उनके पास वशीकरण मन्त्र है उनकी सरलता ,निश्छलता ,ज्ञान गंगा एवं वात्सल्य से भरी आँखों की विनम्रता ! खेलने कूदने जैसी उम्र में ही पीछी कमंडल धारण कर निज-पर के कल्याण के लिये सतत तत्पर हैं !
लेकर दीक्षा आर्यिका की
मुस्कुरा रही हैं आप
दे रही सन्देश सभी को
त्याग से ही कटे ,जन्म जन्म के पाप
छुल्लिका धन्यश्री माताजी जो गुरुदेव के गृहस्थ जीवन की माता हैं ! किन्तु आप के द्वारा जग को नश्वर जान कर दीक्षा ग्रहण कर ,आपसे प्रेरित होकर सँसार सागर को छोड़कर अपने अथाह प्रयासों से आपके द्वारा ही दीक्षित होकर आपके ही चरणों में विराजित हैं !
साड़ी धवल और पीछी कमंडल है
समता का तुममे खिलता कमल है
संयम का जीवन तुम्हे लगे प्यारा
जन्म दिये बेटे ने ही तव जीवन संवारा
गुरुदेव आपके गुणों का बखान करना, इसका कोई अंत नहीं ! क्षमावाणी पर्व के अद्भुत व भावुक दृश्य को देखकर आंसुओं की अविरल धारा सहज ही बहने लगी थी !गुरुदेव शिष्य का समर्पण तो गुरु के प्रति बहुत बार देखा  है ,परन्तु आपका शिष्यों के प्रति समर्पण ,मिलन ,क्षमा याचना आदि को देखने से ही नहीं उसके विषय में सोचने मात्र से ही आज भी मन रोमांचित व द्रवित हो जाता है ! धन्य है आचार्य गुप्ती नंदी जी गुरुदेव जो आत्म दर्शन के दिव्यदर्शन है ,परम सुख सरिता है ,प्रज्ञा एवं प्रतिभा के प्रचंड सूर्य हैं ,समता योग के समर्थ साधक हैं ,अन्तशचेतना संवाहक हैं ,श्रद्धालोक के देवता हैं ! आपके चरणों में नमोस्तु करना ही परमात्मा का पुरस्कार पाना है ! आप जैसे सद्गुरु मिलने पर सभी तीर्थ मिल जाते हैं ! गुरु की कृपा अचिन्त्य होती है ! गुरुदेव आपका सानिध्य मिलने पर शिष्य को कहीं और भटकने की जरूरत नहीं है ! शिष्य का सच्चा समर्पण हो तो सहज ही सब मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं ! गुरुदेव आपके पास रिक्त होकर आने पर झोली स्वयं भर जाती है और कोटि उपवासों का फल मिल जाता है !अन्त में यही कहना चाहूंगी कि .......
आपकी हर बात में होती गहराई है ,
आपके जीवन में तो तप ,त्याग सच्चाई है !
जो माने आपकी सीख,
वही नेक कमाई है !   
श्रीमती उमा जैन धर्मपत्नी श्री प्रदीप जैन ,रोहतक

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