मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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Sunday 19 August 2012

कायोत्सर्ग


किसी गाँव में एक महात्मा जी आये हुए थे ! वे प्रतिदिन कथावाचन करते ,प्रवचन करते और लोगों की जिज्ञासाओं का समाधान करते ! काफी लोग उनकी कथा आदि का श्रवण करने के लिए उपस्थित होते ! उस गाँव में एक नगरसेठ रहता था ! वह एक दिन महात्मा जी का प्रवचन सुनने के लिए जाने की तैय्यारी कर रहा था ! उसने एक तोता पाल रखा था ! वह तोता कुछ कुछ आदमी की भाषा सीख गया था !
तोते ने पूछा –मालिक आप कहाँ जा रहे हैं !
सेठ ने कहा –हमारे गाँव में एक महात्मा जी आये हुए हैं ! वे  बड़े विद्वान हैं ,उनकी कथा सुनने जा रहा हूँ !
तोते ने कहा –मालिक ! आप जा ही रहे हैं तो मेरा एक प्रश्न पूछना कि बंधन मुक्ति कैसे मिलेगी ? सेठ ने वहाँ पहुंचकर प्रवचन सभा के बाद प्रश्न किया कि योगीराज ! मेरे तोते ने एक प्रश्न किया है कि बंधन मुक्ति कैसे मिलेगी ? ज्योंही प्रश्न पुरा हुआ ,बाबाजी पट्ट पर ही गिर गये ,एकदम से शिथिल हो गये !लोग एकत्रित हो गये ! सेठ ने सोचा ,यह सारी बात मेरे ऊपर आएगी कि सेठ ने कुछ सवाल पूछा था ,और चुपचाप वहाँ से खिसक लिया ! कुछ देर में महात्मा जी सामान्य हो गये ! सेठ ज्यों ही घर पहुंचा तोता बोला –मालिक आपने मेरा सवाल पूछा कि नहीं ? सेठ ने कहा –अरे नादान ! आज तो मै बच ही गया ,तुने कैसा सवाल पूछ लिया ! मेरे सवाल पूछते ही बाबजी गिर गये ! मै तो तत्काल ही वहाँ  से रवाना हो गया ! मुझे उत्तर कुछ नहीं मिला ! सेठ उस रहस्य को नहीं पकड़ सका !
कई बार आदमी जो प्राप्त नहीं कर सकता वह ज्ञान पशु पक्षी या सामन्य प्राणी प्राप्त कर लेता है ! तोते ने उस रहस्य को पकड़ लिया !
कुछ दिनों के बाद एक दिन सवेरे सेठ ने देखा कि पिंजरे में तोता निष्प्राण पड़ा हुआ है ! सेठ ने पिंजरे का ढक्कन खोला और घर से बहार लेकर आया ! गहर से बाहर आते ही तोता तत्काल आकाश में उड़ गया !
सेठ ने कहा -  अरे तुम जीवित हो ? यह तुमने क्या किया ?
तोते ने कहा –मुझे तो बाबाजी ने मुक्त करवा दिया ! मेरे प्रश्न का जबाब उन्होंने बोलकर नहीं दिया ,प्रक्टिकल रूप में दे दिया था ! उन्होंने कहा था कायोत्सर्ग कर ले ,शरीर को निश्चेष्ट बना ले ,तुम्हे मुक्ति मिल जाए गी !शरीर को निष्क्रिय किया और मुझे मुक्ति मिल गयी !अब मै खुले आकाश में उड़ान भरूँगा !
यह एक कथानक हो सकता है ,पर इसमें एक मर्म है ! उस मर्म को समझने का प्रयास करना चाहिये ! यह शरीर एक पिंजरा है ,उसमे आत्मा रुपी पंछी बैठा है ! शरीर एक बंधन है ,उस बंधन में पंछी बंधा हुआ है ! उस पंछी को शरीर से निकालने का उपाय है –कायोत्सर्ग ! कायोत्सर्ग के जरिये शरीर के प्रति ममत्व को और आसक्ति को थोडा थोडा कम किया जाए ,साधना की जाए तो मुक्तिश्री का वरन हो सकता है !
आचार्य महाश्रमण जी की पुस्तक “संवाद भगवान से” से

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