मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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Saturday 11 August 2012

श्वासों के स्वर


श्वासों के स्वर
जी हाँ ! आचार्यश्री कहते हैं आती जाती श्वाँस भी कुछ कह जाती है ! हमारी नाक से निकलने वाली सांस को स्वर कहते हैं !
नाक के दायें (Right)छिद्र से सांस चल रही हो तो सूर्य स्वर कहते हैं ! इसे इडा नाडी भी कहा जाता है !
नाक के बाएं(Left) छिद्र से सांस चल रही हो तो चन्द्र स्वर कहते हैं ! इसे पिंगला नाडी भी कहा जाता है !
नाक के दोनों (Both)छिद्रों से सांस चल रही हो तो इसे काल स्वर कहते हैं ! इसे सुषुम्ना नाडी भी कहते हैं !
सुबह उठकर अपने आराध्य देव का स्मरण करें और पलंग से पाँव नीचे रखने से पहले देखें सूर्य या चन्द्र जो स्वर चल रहा हो उसी तरफ वाला पैर जमीन पर नीचे पहले रखें ! अगर काल स्वर चल रहा हो तो कुछ सेकेंड महसूस करें ,जिस छिद्र से सांस तेज आ रहा हो वह पैर पहले जमीन पर रखें ! इस नियम का पालन हर कार्य में करें जैसे घर से बाहर जाते हुए ,गाडी में बैठते हुए ,गाडी से उतरते हुए ,ऑफिस में पहला कदम रखते हुए आदि !इस तरह कार्य करने से आपका सारा दिन सफल रहने के मौके बढ़ जाते हैं !
जब दोनों स्वर एक साथ चल रहे हों यानि काल स्वर हो तब भूल कर भी कोई नया कार्य न करें ! अन्यथा वह कार्य निष्फल ,असफल हो जाता है !लेकिन पूजा पाठ ,धार्मिक अनुष्ठान ,मन्त्र जाप आदि काल स्वर के चलते अवश्य करने चाहियें !काल स्वर में मंत्र जल्दी सिद्ध होते हैं ! थोड़े से अभ्यास से कोई भी मन्त्र जाप आदि करते हुए काल स्वर को पा सकता है ! काल स्वर प्राप्त करने के लिए लंबी साँसे लें !किसी को शुभ कामनाएं ,आशीर्वाद देते हुए काल स्वर अति फलदायी होता है !काल स्वर के चलते कोई प्रश्न या भविष्यवाणी बिलकुल नहीं करें !
सूर्य स्वर के चलते किसी नए कार्य की शुरुआत ,भोजन ग्रहण करना भाषण ,शास्त्रार्थ आदि अच्छा रहता है !
औषधि ग्रहण करना ,जल ग्रहण करना ,ज्ञान दान ,विद्या प्राप्ति आदि चन्द्र स्वर में अच्छा रहता है !
आचार्य श्री गुप्तिनंदी जी की प्रात: कालीन कक्षा से

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